
जब महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी आती है, तो पूरा माहौल “बप्पा मोरया!” से गूंज उठता है – डांडिया, ढोल, 100 फीट की मूर्तियाँ, और 1000 करोड़ की बीमा पॉलिसी! और इधर उत्तर भारत में?
“अरे भाई, गणेश चतुर्थी क्या होती है? दशहरे में मिलते हैं!”
धार्मिक कारण या ‘Calendar Confusion’?
उत्तर भारत की परंपराओं में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के बजाय ऋषि पंचमी और हरितालिका तीज पर ज्यादा ध्यान रहता है।
कई पंडित तो आज भी कहते हैं – “ये महाराष्ट्रियन पर्व है, अपने यहां नहीं होता।”
(शायद Google Calendar तब नहीं था, वरना सबके अलर्ट बजते!)
संस्कृति का भौगोलिक GPS: Location-Based Devotion
भारत में त्योहारों की भावना भी GPS आधारित लगती है। महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में बप्पा हर गली-मोहल्ले में Superstar हैं। उत्तर भारत में?
यहां रामलीला, नवरात्रि, और दशहरा ही त्यौहारों की “बिग बॉस” हैं।
Ganpati को मिला है ‘Guest Appearance’ का रोल… बस घर में छोटी मूर्ति रखो और शांति से विसर्जन करो।

इतिहास भी बोले – “North में No Entry!”
गणेश चतुर्थी को सार्वजनिक उत्सव के रूप में लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है लोकमान्य तिलक को। 19वीं सदी में उन्होंने इसे ब्रिटिश राज के खिलाफ सांस्कृतिक एकता का हथियार बनाया — लेकिन महाराष्ट्र में।
उत्तर भारत तब तक शायद “बाबा तुलसीदास की रामचरितमानस” में व्यस्त था। Ganpati वहां सिर्फ पूजा घर में चुपचाप विराजते रहे – बिना DJ, बिना पंडाल।
तो क्या उत्तर भारत में बप्पा का स्वागत नहीं होता?
बिलकुल होता है! लेकिन ज़ोर-शोर से नहीं, सादगी से। घर में छोटी मूर्ति, शुभ मुहूर्त में स्थापना, और एक-दो दिन बाद विसर्जन – that’s it! पंडाल-प्रदर्शन, भव्य झांकी, और लंबी लाइनें यहां उतनी आम नहीं। उत्तर भारत में लोग बप्पा को lowkey love करते हैं। एकदम “I love you, but I won’t post about you” टाइप।
बप्पा सबके हैं, स्टाइल थोड़ी अलग है!
Ganesh Chaturthi को न मनाने का मतलब ये नहीं कि उत्तर भारत में भगवान गणेश का सम्मान नहीं होता। बस यहां लोग अपने कूल अंदाज़ में श्रद्धा दिखाते हैं। ना ढोल, ना DJ – पर भक्ति पूरी 4G स्पीड वाली होती है।
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